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क्या प्यार किसी उम्मीद पूरी होने का मोहताज है?

रिश्ते कितने खुबसुरत होते है, हमें निराशा के दामन में पंहुच जाने पर उम्मीदों की धरातल पर वापस लाते हैं। ये रिश्ते ही होते है जो सब कुछ हार जाने के बाद भी हमारे दिल में उम्मीदों की लौ जलाए रखते है। इनमें कुछ रिश्ते ऐसे भी होते है, जो बेनाम होते है, उन्हें चाह कर भी हम नाम दे नहीं सकते, नाम कारगर किया तो उस लफ्ज़ के मायने में वह रिश्ता सिमट जाएगा। कुछ रिश्तों के नाम नहीं होते, हां मगर वह बदनाम नहीं होते। आइए दलालत करे उन रिश्तों का, जो इबादत की जमीं पर फलते-फुलते है।

यु इस तरह मेरा दिल तोड़ कर

तुम अभी  ना जाओ छोड़  कर, यु इस तरह मेरा दिल तोड़ कर , क्यो गेरो में मसरुफ हो  गए, यु इस तरह मेरा दिल तोड़ कर, मुख्तलीफ है हम दुनिया के लिये, रिवायतो की जन्जीरे बंधी है इसलिये, जो हम दोनो को जुदा कर दे , ऐसे मजहब को मैं मानु किसलिये ज़माने को भी मनाने की कोशिश की, तुमने यु मेरी हौसला अफज़ाई की , मुझसे खामोशियो से राब्ता कर, यु इस तरह मेरा दिल तोड़ कर, क्यो गेरो में मसरूफ हो गए , यु इस तरह मेरा दिल तोड़ कर

आतंक

हा उसने ये आतंक मचा रखा  है , जीत नही चाहीए हमे हराना है , ज़िस देश में लोग हो भुखे और असुरक्षित, उसने हमे फ़ना करने का बीड़ा उठाया है , सिंधु नदी, मोस्ट फेवर्ड नेशन ये तो है शुरुआत , तुम्हारे बचे कूचे अस्तित्व को ऐसे ही मिटाना है, खास दुश्मन का है मोहरा वो ज़रूरतो का , खत्म हुई तो प्यादे माफिक सस्ते में निपटना है!

संघर्ष

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जिंदगी कभी-कभी ऐसी लगती है, आस्मां से गिरे खजूर पर अटके जैसी लगती है, दिल के मामलो की राजनीति छोड़ आए, बाहरी मुद्दों पर  परेशानी खड़ी लगती है, जब लिखा ही है किस्मत में संघर्ष करना, मैदान छोड़ने की बात बेवजह लगती है, अस्तित्व पर उठता है जब-जब सवाल, प्रहार में संसार की  शक्ति अनुभव होती है, जीत गए तो नया युद्ध सामने होता है, जिंदगी इसी तरह तो रंगीन लगती है।

स्मार्ट

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लड़का लड़की से - तुम ब्लैक ड्रेस में बहुत स्मार्ट लगती हो! लड़की- कभी कभी मैं  एयरटेल और आईडिया भी लगती हु!

स्वच्छ भारत

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अर्थव्यवस्था एक खेल है जो मुझे समझ नहीं आता, जीना है तो दो शब्द इसके बारे में कह ही देते है, स्वच्छ भारत का इरादा बच्चों और बुढ़ो, सभी ने किया, फिर भी कचरा शौक से बनता है खाली प्लाॅट की शोभा, दीवार पर लिखा विरोधियो ने, गधा पेशाब कर रहा है, पेशाब करने वाला बेचारे गधें पर इल्ज़ाम लगा रहा है, जहां सोच वहा शौचालय कभी-कभी सुनना, लगता है अजीब, पढ़ाने के अलावा शिक्षक के है दूसरे सभी काम, हालात करीब, हाथों को धोए एंटिसेप्टिक से, भलें ही खाना नसीब न हो भुखे रहो, कीटाणु दूर भगाओ, मगर महंगाई कम न हो!

व्यथा

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ये कैसी व्यथा है, एक्सक्यूज मी कह कर मदद के लिए बुलाया तो कोई नहीं आया, भैया कहने पर सब दौड़े  गए !