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Showing posts from August, 2016

स्वच्छ भारत

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अर्थव्यवस्था एक खेल है जो मुझे समझ नहीं आता, जीना है तो दो शब्द इसके बारे में कह ही देते है, स्वच्छ भारत का इरादा बच्चों और बुढ़ो, सभी ने किया, फिर भी कचरा शौक से बनता है खाली प्लाॅट की शोभा, दीवार पर लिखा विरोधियो ने, गधा पेशाब कर रहा है, पेशाब करने वाला बेचारे गधें पर इल्ज़ाम लगा रहा है, जहां सोच वहा शौचालय कभी-कभी सुनना, लगता है अजीब, पढ़ाने के अलावा शिक्षक के है दूसरे सभी काम, हालात करीब, हाथों को धोए एंटिसेप्टिक से, भलें ही खाना नसीब न हो भुखे रहो, कीटाणु दूर भगाओ, मगर महंगाई कम न हो!

व्यथा

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ये कैसी व्यथा है, एक्सक्यूज मी कह कर मदद के लिए बुलाया तो कोई नहीं आया, भैया कहने पर सब दौड़े  गए ! 

जंजीर

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मुझे गहनों की जंजीरों में जकड़ना पसंद है, मगर रस्मो रिवाजो कि नहीं, इन जंजीरो का  मुझसे गहरा  है, कभी जेवर बनके मेरी नजाकत बढ़ाते है,  तो कभी बेड़ी बन कर मुझे उड़ने से रोकते है, 'लोग क्या सोचेगे' इस नाम की कैद से रिहा भी हो जाऊ तो भी कैसे खुश रह पाउगी बिना किसी बेड़ी के भी एक युद्ध का सामना करुँगी मैं , अपने आत्म सम्मान की लड़ाई अटल होकर लडूंगी  मैं !

गरीब

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दोस्त, लाचार, बेबस और खाली जेब पड़े है, कहते है आजकल गर्लफ्रेण्ड मिलती कहां है, देखा इधर-उधर और मुंह ताड़ते रहे, एक खुबसुरत लड़की के पीछे भागते रहे, शादी हुई तो घर से बंध गए, राशन किराना के भाव पता चल गए, अब तो दाल भी मिलना नसीब में नहीं है, ये अब अमीरो का खाना, गरीबों का नहीं है, मेरी इंश्योरेंस पॉलिसी कुछ काम कर जाए, मरने के बाद बच्चों के सपने पूरे हो जाए, जिंदगी रहते तो कुछ कर न सका, घरवालों के आंसू पोछ न सका, उस दुनिया में तो मुझे यमराज भी सताएगें, गिन-गिन के हर पाप मेरे पकोड़े बनाएगें।

परदेस

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                                     जाने क्यों उस मिट्टी में क्या है जो घर की याद आती है,                                       जाने इस परदेस में क्या है जो  यहाँ रोके रखता है,                                                इस कश्मकश में ही  जीये जा रहे है,                                           दिल है कही ओर, दिमाग की माने जा रहे है,                                      दिल ओर दिमाग की मनमानी एक होना चाहिए,                                        जिंदगी लंबी नहीं बल्कि बड़ी होना चाहिए,                                           पंछी है हम आखिर उड़ना भी सीख गए,                                         दस्तूर है नया आशियाना, वो बना गए,                                     अपनों से दूर होना कोई बड़ा मसला नही,                                    गैरो को अपना बनाना किसी को आता नहीं,                                       अब जिंदगी का फलसफा कुछ ऐसा होना चाहिए ,                                         जिंदगी लंबी नहीं बल्कि बड़ी होना चाहिए। 

बारिश

बारिश प्रेमियो का मौसम है, इसकी बुराई करना जरा महँगी है, मगर ज़रा गौर करे जिसे धुप से मोहब्बत है, उसके लिए तो जिंदगी अभी बेमतलब है , वोह तो बिछड़ा है अपने प्रेमी से, सूरज से प्यार वही एक तो करता है, सूरज जगाता है जोश कुछ करने की, बारिश देती है ठण्डक, ले जाती है रंगत,  अब न करो मनमानी  बारिश खूब, है सूरज की किरणों से मोहब्बत बहुत !   

खामोशी

कभी - कभी परिस्थितियॉं व्यक्ति को बहुत बुरा बना देती है , कहते है कि महिलाओं से ज्यादा पुरूषों में भावनाएं होती हैं , बस वह उसे लफ्ज़ो में बयां नहीं करते , मगर कोई खामोशी से तो आपकी भावनाएं नहीं जान सकता , कभी तो दर्द को लफ्जों का रूप देना चाहिए।

कल

सोचती हुँ, कल का दिन तो खुशियाँ लेकर आएगा, बस आज कैसे भी गुजर जाए हर दिन ये सोच के गुजर जाता है लगता है मै जिन्दा हूँ कल के इंतजार में, मगर कल तो कभी नहीं आता है।