जंजीर
मुझे गहनों की जंजीरों में जकड़ना पसंद है,
मगर रस्मो रिवाजो कि नहीं,
इन जंजीरो का मुझसे गहरा है,
कभी जेवर बनके मेरी नजाकत बढ़ाते है,
तो कभी बेड़ी बन कर मुझे उड़ने से रोकते है,
'लोग क्या सोचेगे' इस नाम की कैद से रिहा भी हो जाऊ तो भी कैसे खुश रह पाउगी
बिना किसी बेड़ी के भी एक युद्ध का सामना करुँगी मैं ,
अपने आत्म सम्मान की लड़ाई अटल होकर लडूंगी मैं !
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